धीरे-धीरे रेगिस्तान में बदलते बुंदेलखंड के छतरपुर जिले का बक्स्वाहा क्षेत्र का हरा-भरा जंगल इस इलाके की पहचान है।मगर अब इसी जंगल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, वास्तव में यह सिर्फ जंगल ही नहीं है बल्कि यहां जीवन का बसेरा है। बुंदेलखंड के इस जंगल में हीरे का भंडार है और जमीन के भीतर दबे हीरे की चाहत में जमीन के ऊपर नजर आने वाले हीरा रूपी जंगल को नष्ट करने की कवायद चल पड़ी है। इसका विरोध भी चौतरफा शुरु हो चुका है, कोरोना काल में गहरे संकट ने यह बता दिया है कि तिजोरिओं में बंद सोना, चांदी, हीरा को बेचकर लोगों ने प्राणवायु ऑक्सीजन पाई है तब जाकर जीवन बच पाया है और इस ऑक्सीजन का वास्तविक उत्पादन केंद्र जंगल ही है। अब हीरा पाने की चाहत में इस ऑक्सीजन के पावर हाउस को खत्म करने की मुहिम चल पड़ी है यहां पचास तरह के पेड़ हैं, तो कई तरह के वन्य प्राणी व पक्षी का ठिकाना है।स्वतंत्र पत्रकार राजेश सिंह यादव बताते हैं कि बक्सवाहा के जंगल सिर्फ पेड़ों का एक स्थल नहीं है, बल्कि यहां जिंदगी और संस्कृति दोनों का बसेरा है। वास्तव में इस जंगल में सिर्फ पेड़ नहीं है बल्कि यहां जिंदगी बसती है। हजारों परिवारों की आजीविका यहां के पेड़ों पर उगने वाली वनस्पति से चलती है तो दूसरी ओर जंगल पर तरह-तरह के वन्य प्राणी, जीव-जंतु पक्षी आश्रित हैं।जंगल के उजड़ने पर इन सभी का जीवन संकट में पड़ जाएगा जो कि सैकड़ों साल में तैयार की गई धरोहर कुछ सालों में नष्ट कर दी जाएगी।जंगल के जल स्रोत खत्म हो जाएंगे तो इस इलाके में जल संकट और गहरा जाएगा वैसे भी बुंदेलखंड में पानी का संकट किसी से छुपा नहीं है।
बक्सवाहा ऐसा जंगल है जिस्से वनवासी संस्कृति जुड़ी है, रहन-सहन जुड़ा है, परंपराएं जुड़ी हैं, कुल मिलाकर इस जंगल के नष्ट होने से ईको सिस्टम छिन्न भिन्न हो जाएगा।
मध्य प्रदेश के जनपद छतरपुर के बक्सवाहा में हीरो का भंडार है और यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं। इसकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है। जिस निजी कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है। अगर ऐसा होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों पर सीधा असर पड़ेगा जोकि पर्यावरण के लिए बेहद घातक है।
अंततः स्वतंत्र पत्रकार राजेश सिंह यादव ने बक्सवाहा के हरे-भरे जंगलों को ना काटे जाने की अपील की है।
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