पुलित्जर अवार्ड विजेता जांबाज पत्रकार दानिश सिद्दीकी हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे - राजेश सिंह यादव।

भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी अंतिम सांस तक तस्वीरों के जरिए दुनिया को अफगानिस्तान के हालातों से रूबरू कराते रहे। अब दानिश सिद्दीकी हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनके काम हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे। उनकी तस्वीरें बोलती थीं, यही वजह है कि दानिश सिद्दीकी को उनके बेहतरीन काम के लिए पत्रकारिता का प्रतिष्ठित पुलित्जर अवॉर्ड भी मिला था। दानिश सिद्दीकी ने रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को अपनी तस्वीरों से दिखाया था।दानिश सिद्दीकी अपनी तस्वीरों के जरिए आम आदमी की भावनाओं को सामने लाते थे। दिल्ली दंगा हो या कोरोना से हाहाकार, रोहिंग्या शरणार्थियों की बात हो या फिर अफगानिस्तान में जंग के हालात...हर जगह के हालात को दानिश ने अपनी तस्वीरों के सामने देश और दुनिया को दिखाया था।
एक ट्वीट कर दानिश ने बताया था कि जिस गाड़ी में वे सवार थे, उसे कैसे निशाना बनाया गया। 
उन्होंने लिखा था कि सुरक्षित बच जाने पर वे खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहे थे। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था- जिस बख्तरबंद गाड़ी मैं अन्य विशेष बलों के साथ यात्रा कर रहा था, उसे भी कम से कम तीन आरपीजी राउंड और अन्य हथियारों से निशाना बनाया गया था। मैं भाग्यशाली था कि मैं सुरक्षित रहा और मैंने कवच प्लेट के ऊपर से टकराने वाले रॉकेटों के एक दृश्य को कैप्चर कर लिया।
दानिश सिद्दीकी को 2018 में पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। वे न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करते थे। दानिश सिद्दीकी की मौत शुक्रवार को पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्पिन बोल्डक में हुई, वे मौत के समय अफगान सुरक्षाबलों के साथ थे।
अफगानिस्तान के कंधार में तालिबानी आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच जारी लड़ाई की कवरेज के दौरान भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की हत्या कर दी गई। 
दानिश सिद्दीकी की मौत पर जो बाइडेन प्रशासन और अमेरिकी सांसदों ने दुख जताया है।
दानिश सिद्दीकी को तालिबानी आतंकियों ने गोली मारी घटना के समय वे अफगान सुरक्षाबलों के साथ थे।
तालिबान भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है।
तालिबान यह चाहता है कि अफगानिस्तान में 2001 से पहले जैसे उसने शासन किया उसी प्रकार उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता और पहचान मिले। अफगानिस्तान के लगभग 85 फीसदी हिस्से पर वो अपना कब्जा जमा चुका है और वह अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार और उसके सैनिकों को खत्म करने पर अमादा है। तालिबान को इस बात का पूरा यकीन हो चला है कि अब उसके रास्ते में कोई आने वाला नहीं है। तालिबान को लेकर भारत की चिंता जायज है और अफगानिस्तान को लेकर अपना पक्ष भी रख दिया है।
अफगानिस्तान में भारतीय नागरिकों की चिंता के साथ ही साथ कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को लेकर भी भारत चिंतित है। तालिबान मध्य एशिया के देशों और ईरान के सीमा के शहरों को अपने कब्जे में कर रहा है। भारत के सामने एक अलग ही चुनौती सामने आने वाली है। चाबहार बंदरगाह, तापी गैस पाइप लाइन प्रोजेक्ट की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ रही है।
रॉयटर्स के प्रेसिडेंट माइकल फ्रिडेनबर्ग और एडिटर-इन-चीफ एलेसेंड्रा गैलोनी ने एक बयान में कहा, 'हम इस घटना को लेकर और जानकारी जुटा रहे हैं। सिद्दीकी एक आउटस्टैंडिंग जर्नलिस्ट, एक समर्पित पति और पिता थे। साथ ही वो सबके पसंदीदा कलीग थे। इस मुश्किल समय में हमारी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं।
स्वतंत्र पत्रकार राजेश सिंह यादव बताते हैं कि दानिश सिद्दीकी मुंबई के रहने वाले थे। उन्होंने दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया था। 2007 में उन्होंने जामिया के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर से मास कम्युनिकेशन की डिग्री ली थी। उन्होंने टेलीविजन से अपना करियर शुरू किया और 2010 में रॉयटर्स से जुड़ गए।
दानिश सिद्दीकी के पिता प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी ने बताया कि दानिश अपने काम को लेकर बेहद संजीदा थे। प्रोफेशन के आगे वह किसी की भी बात नहीं सुनते थे। दानिश को चैलेंज लेना पसंद था। पिता ने कहा कि दानिश के पैशन को देख हमने उसे अफगानिस्तान जाने से नहीं रोका।
अंततः स्वतंत्र पत्रकार राजेश सिंह यादव बताते हैं कि हमने जांबाज पत्रकार दानिश सिद्दीकी को खो दिया है लेकिन वह हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।
ऐसे जांबाज पत्रकार को दिल से सलाम।

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